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03:03, 14 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सतीश गोल्याण
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
चुगली करनी अेक अजब कला होवै
कईयां री कीं बात, मनड़ै नै मोवै
सबदां सागै ईसी जोड़ै सुर‘र ताल
कई घर चक दिया कलो काकी रा कमाल
जिकै घर पूगगी ओ कलो काकी
बठै न्यारो ई चूल्हा अर न्यारी ई चाकी
काकी जाणै सगळै बास री कहाणी
सोचां, आ काकी है कै आकाषवाणी
बां‘रै घरां सूं निकळती काकी बोली
पूछ‘र आई हूं बा‘रों हालचाल
घण्टै‘क पाछै बां’रै आंगणै, बाजै ई धमाळ
अेक दिन धापी आरी मोटोड़ी बीनणी
माथै खूब रंग चढ़ायो,
बे‘रो नीं कुणसो मंत्र हो, आथण ई डैणती
रो भोड, मतीरै दाईं फुड़वायौ
बै मीठी-मीठी सी बातां,
अर हाथां री अलबेली अदावां,
काकी आगे ई लादै चावै किन्नै ई जावां
धुन री पकी अर आपरै काम री ईमानदार
काकी कठै ई फेल कोनी होई, हो रिकॉर्ड स्यानदार।
</poem>