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03:06, 14 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सतीश गोल्याण
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
चुणावां री घोषणा होतां ई
म्हारै पेट में कीड़ो कुळबुळायो
बीं सिंझ्या ई जा‘र
चौधरी रो कुंटो खड़कायो
चौधरी साब नै बां‘रो
वादो याद करवायो
म्हानै चुणाव लड़ान खातर
सगळै गांव में हैलो मरवायो
दिन ऊगतां ई गांव रा सगळा
दारूखोर म्हारै घरां पूगग्या
विरोधी नै गाळा काढता-काढता
सगळा रोट जीमग्या
मनै मोटा-मोटा सपना दिखा‘र
बांस पर चढा दियो
सगळी जिग्यां मेरी जै-जै
बोल‘र भाव बढ़ा दियो
हाथ जोड़‘र दांतरी दिखा‘र
सगळा नै राम-राम कैंवणों
बात शुरू करतां ई कैंवतो
भाईयो और बहणो
शुरू कर दियो
चुणावां रो प्रचार
बेली देवण लाग्या
नूवां-नूवां विचार
कोई कुड़तो खींचै
अर कोई खींचै हाथ
ईंयां लागै जियां गांव रा
सगळा ई है म्हारै साथ
सगळा रा सगळा आथण नै
मनै जिता‘र सोंवता
कैंवता, आपणी जीत पक्की
विरोधी फिरैगा रोवंता
सपोटिया, सगळै दिन पींवता दारू
अर पाड़ता रोट
पण म्हानै जमा ई नीं
लागतो, बामै खोट
पन्द्रह दिना में
पचास मण कणक चाटग्या
दस हजार री दारू
पचास हजार
नगद बांटग्या
घणो ई करजो सिर पर होग्यो
पण नेतागिरी रा आंता सुपना
बेली कैंवता, अेकर हाथ लागज्यै
फेर ठाट देखी आपणा
सागी दिन तो रूणक लगाली
दस पेटी दारू और मंगाली
जियां-जियां वोटां री गिणती होई
सागड़ती सरकण लाग्या
बानै तो पैलां ही बेरो हो
पण म्हे जब जाग्या
रिजल्ट सुणता ई म्हानै
आग्यो तिंवाळो
आज चुणाव हारयां हा
तड़कै घर गो निकळसी दिवाळो
जिकां न पियाई दारू
अर जीपां में ढोया
बांरा वोट ओर कानीं
पोल होया
म्हूं जाण नीं सक्यो कै
राजनीति ईंनै कैवै
वोट किंनै ई देणो
सागै किण‘र ई रैवै
उधारिया सगळै दिन सेकता
मिलता बठै‘ई टोटको फेंकता
हार-जीत तो होवै ही है
दिल ना करो छोटो
पण म्हूूं जाणै हो कै बीती
म्हारो ई सिर, म्हारो ई घोटो
आगै सांरू चुणाव नीं लड़ांगा
आ सोगन खाई
सपोटिया महीनै तांई काच काटग्या
सागै करी जंग हंसाई।
</poem>