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03:18, 17 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= आनंद कुमार द्विवेदी
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काबा भी खूब जाइए काशी भी जाइए
पहले दिलों में प्यार के दीपक जलाइए
आँखों को नम न कीजिये यूँ बात बात पर
दुनिया के ग़म के देखिये कुछ मुस्कराइए
फौरन से पेश्तर सुकून दिल को मिलेगा
बच्चों के साथ खेलिए उनको हंसाइये
महफ़िल में दिल का दर्द बयाँ कर चुकें हों तो
फ़ाका-क़शों की बात भी थोड़ी चलाइये
सत्संग से मिलाद से कुछ वक़्त बचे तो
दो पल की किसी गरीब का बच्चा पढ़ाइये
बदलाव चाहते हैं तो बदलाव कीजिये
नाहक न यहाँ मुल्क की कमियां गिनाइये
‘आनंद’ वहीं है जहाँ दुनिया में दर्द है
अपने को इस तरह से अलम का बनाइये
</poem>
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