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|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
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|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>

सांसों पर पहरे बैठे हैं, कुछ कह पाना मुश्किल है,
दर्द छुपाना आसाँ था पर, प्यार छुपाना मुश्किल है

नदी किनारे जिस पत्थर पर पहरों बैठे थे हम-तुम
खुद को भूल गया हूँ लेकिन, उसे भुलाना मुश्किल है

पीने वाले आँखों के मयखाने से, पी लेते हैं,
कहने वाले कहते घूमें लाख, जमाना मुश्किल है

ये उसकी साजिश है कोई, या उसका दीवानापन
मुझसे ही कहता है, तुमसा आशिक़ पाना मुश्किल है

तुम ही कुछ समझाओ यारों, मेरे इस नादाँ दिल को
फिर उसको पाने को मचला, जिसको पाना मुश्किल है

मेरे दिलबर की दुनिया भी खूब तिलस्मी दुनिया है
आना तो आसाँ है इसमें, वापस जाना मुश्किल है

जाने उसकी आँखों में क्या बात क़यामत वाली है
जिससे नज़रें मिल जाएँ, उसका बच पाना मुश्किल है

मिले कहीं ‘आनंद’ तुम्हें तो सुन लेना बातें उसकी
सचमुच दीवाना है वो, उसको समझाना मुश्किल है

</poem>
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