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14:16, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गाढ़े वक़्त के लिए बचाए गए धन की तरह
वह खर्च करती है
एक-एक शब्द
न कम न ज्यादा;
और मुझे ....
उतने से ही चलानी होती है
अपने प्रेम की गृहस्थी,
महीने के उन दिनों में भी
जब वह नहीं खर्चती एक भी शब्द ...!
</poem>