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14:29, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
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<poem>
गोली मारो प्रेम को
हो सके तो कभी एक बात का ख्याल करना
एक जोड़ी गीली आँखें
एक अदद खाली खाली दिल
इनको जैसे तैसे संभाले एक काया
और है...
तुम्हारे पास
तुम्हारे व्यक्तित्व के अतिरिक्त,
जिसका अपना कुछ नहीं
पहचान भी नहीं !
सुनो...! स्टैंडबाई चीज़ें भी
कभी इस्तेमाल न होने पर
इस्तेमाल लायक नहीं रहती फिर !
</poem>
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