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16:27, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
निपट अकेलेपन में भी
कोई न कोई
साथ होता है,
इंसान के बस में न साथ है
न तनहाई,
बेबस इंसानों से खेलना
न जाने किसका शगल है
जिसे कुछ लोग
‘लीला’ कहते हैं !
</poem>