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18:14, 18 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=जरिबो पावक मांहि / आनंद कुमार द्विवेदी
}}
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<poem>
प्रेम को भी
इस्तेमाल किया जा सकता है
सीढ़ी की तरह
कुछ लोग आगे जाने के लिए
करते ही हैं
कुछ लोग नाम जपते हैं
सारी उम्र
प्रेम का
और उड़ाते हैं मज़ाक
अपनी बीवियों का
महान उद्योगपति,व्यवसायी,
महान कलाकार
सब बेकार ....
अगर आप
नहीं हैं महान प्रेमी,
प्रेम !
खूब भरता है अहंकार को
प्रेक्टिकली संभव नहीं था
जिनके लिए
प्रेम,
उन्होंने अलग क्षेत्र चुना
इस तरह दुनिया को दो नयी प्रजातियाँ मिलीं
दार्शनिक
और बुद्धिजीवी
अन्ततोगत्वा
सभी होते हैं प्रेम में
खुद के !
</poem>