Changes

कहीं पे धूप / दुष्यंत कुमार

3 bytes added, 00:53, 8 सितम्बर 2006
तमाशबीन दुकानें लगा के बैठ गए।<br><br>
लहू लुहान नज़रों नज़ारों का ज़िक्र आया तो<br>
शरीफ लोग उठे दूर जा के बैठ गए।<br><br>
ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है<br>
यहां बबूल के साये में आके बैठ गए। <br><br>