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06:45, 25 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=आशा पांडे ओझा
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नीं कटे, नीं बलै
नीं कदैइ ठूंठ बणे
ओऴयूं रा रूंखड़ा
जून रे तावड़ा सीरखो
यो तपतो जूण
बैठाय लेवे ठाडी छाँव
पकड़ म्हारी बाँव
ओऴयूं रा रूंखड़ा
नीं चावे म्हारे मेल माळिया
म्हारी ठौर म्हारा ठांव
ओऴयूं रा रूंखड़ा
जे गम जाऊं म्हे
अर थें चावो सोधणा
आजाइजो
म्हारी गळि म्हारो गाँव
ओऴयूं रा रूंखड़ा
</poem>
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