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|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
हरियाळा सुपना तिरता गेलै माथै
डूंगर न्हावै ताज़ी बिरखा में
झपाझप है हरियाळो
आखी दूर ढळा तांई पसरयो
दूर एक पगडंडी
इण हरियाळै नेचै रै बिचाळै
जियां
बगत री एक आडी रेख
जांवती अणंत ताईं...।
</poem>
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