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|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
बा छोरी अचपळी
रंग सगळा घुळया-थेथड़ीज्या
उण रै भोळपणै में
रूंखां री भेळप-तान में डूबी
बो यादां रो विराट गळियारो है
उण सूं इणी छिण
रिंधरोही नामवान सी
सगळो फुटरापो
आय जाणैं उण नै पगां निंवै
जूण री मानीजती किताबी अबखायां सूं अळगी
सगळा नेमां नै बिसरावंती सी
फळसे सूं न्यारी अणछूई
टपकती एक निरदोस-बूंद सी
कुदरती औज सूं पळकती
मिनखपणै सूं चमकती
जूनैपण सूं चिरचिज्योड़ी
एक सावसोवणी आदिवासी छोरी
इण बगत मिनख होवण रै स्सै सूं नेड़ै है।
</poem>
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