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|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
कोई तो जांवती होवैला पगडांडी
उण मकान तांईं
केतन एक ऊंची चोटी टिरै
कोई तो जांवतो ई होवैला
रात बास्सै सारू
उजाड़ रै सुनियाड़ नै भरण
इण घाटी रै सरणाटै नै हरण।


</poem>
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