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10:12, 26 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=भंवर कसाना
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
सूरज सूं होड री
घमसाण में
पळपळांवतो दिवळो
कद समझी है
किणी फिड़कलै री प्रीत
बो तो राखी है सदाई
जीत में नीत
जीत हा जीत
जिकी मिली हो भलांई
किणी रै बळणै सूं
प्रीत तो निछरावळ रो
बीजो नांव है
पण
निरमोही नै
कोयी निछरावळ
कद करा सक्यो
आपरी प्रीत रो अेसास
बठै तो ओ
अेंकार ई बढ़ावै
भभको उठावै
हिरदो कद पिघवाळै
अर कद बुझावै
किणी रै
अंतस लाग्योड़ी लाय
ईं वास्ते म्हारा बीर!
जे किणी रै अंतस नै
झिंझोड़णो है तो
तूफान बणनो पड़ैला
तूफान नीं तो
आंधी बणो
आंधी नीं तो
बगूळ ई बणो
हिंसा कै अहिंसा
किणी तरीकै सूं
जूंझो, भिड़ो कै लड़ो
पण
राकस नै रिझावण तांईं
आत्मदाही मत बणो।
</poem>
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