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<poem>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं।<br>फूल से पंखुरी जैसे झरती रही ॥<br><br>रही॥
जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत,<br>अपनी ममता निछावर करती रही।<br>मेरी सांसों साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
वक़्त के हाथों में, मैं बड़ी हो गई,<br>माँ की चिन्ता की घड़ियां घड़ियाँ बढ़ती रहीं।<br>मेरी साँ सों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई,<br>माँ की ममता सिसकियां सिसकियाँ भरती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए,<br>फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
वक़्त जाता रहा मैं तड़पती रही,<br>माँ के आंचल को मैं तो तरसती रही।<br>मेरी सांसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
एक दिन मैं भी बेटी की माँ बन गई,<br>अपनी ममता मैं उस पर लुटाती रही।<br>मेरी सांसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
देखते-देखते वह बड़ी हो गई,<br>ब्याह-कर दूर देश में बसती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए,<br>मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
वक़्त ढ़लता रहा, सपने मिटते रहे,<br>इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
सब कुछ मिला पर माँ न मिली,<br>माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा,<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ दफ़न हो रहीं।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br>
जीवन का नियम यूं यूँ ही चलता रहे,<br>ममता खोती रही और मिलती रही।<br>मेरी साँसों की घड़ियां घड़ियाँ बिखरती रहीं॥<br><br/poem>
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