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|रचनाकार=सुरेन्द्र सुन्दरम
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हैं आंख्यां सूं ओळख्यो
जद भी म्हारो गांव
खुल्या ठेका दारू रा
कठै ई जूवै रा ठांव
भींतां सूं
भींतां लड़ै
लड़ै मिनख री जूण
भूखा ई मरै चिड़कली
कागला खावै चूण
कांटां सूं छुलगी
ऐ गळयां
कठै धरूं पग-पावं
म्हैं किंयां ओळखूं
म्हारो गांव।

</poem>
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