1,587 bytes added,
08:31, 27 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुंजन आचार्य
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
मंदर में
आरती में
देवरा में
रोज बजावां टन-टन
पण नी सुणै भगवान
आपणी बात में नी दे कान, नी दे ध्यान।
थाणी अर माणी आस्था
मंगरा ज्यूं अटल है।
भगवान सुणै या नी सुणै
रोज परभातै अर शाम
घंटी नी लैवे आराम।
घंटी भी नी सुणै थारी
पर थारो धीरज है भारी।
ऑफिस में चपरासी नी सुणै थारी घंटी तो
बापड़ा ने गाई मार्यो कर न्हाखै।
पण भगवान रे जोड़े घंटियाता थूं नी थाकै।
अबै घंटी अर भगवान ने दे आराम
अर कर थूं एक मोटो काम।
नींद काढता मनखां रै कान में
थनै घण्टी बजाणी है
लोकतंतर में हूवा सूं नीं चालेगा काम
जागबा री बात सबनै हमजाणी है।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader