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|रचनाकार=कुंजन आचार्य
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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पाणी जीवण रो आधार
पाणी है जीवन री धार।
वापरणो है होय हमज ने
पाणी हर प्राणी रो सार।

इंदर राजा रो जयकारो
घणी खम्मा थां म्हानौ तारो।

काल पड़या पाणी ने मज्या
पाणी निपजै पैदावार।
पाणी रो जो मान राखलै
नैया हो जावैली पार।

इंदर राजा रो जयकारो
घणी खम्मां थां म्हानै तारो।

घणां बादळा आया अबकै
घणा बादळा बरस्या जोर।
झीलां मारी खावै थबोळा
मन में बाणै नाच्या मोर।

इंदर राजा रो जयकारो
घणी खम्मा थां म्हाने तारो।

</poem>
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