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हेत / सिया चौधरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
अरे हेत
थूं आयग्यो कांईं
कठै रैयो इतरा दिन ?
कुण रै सुपना रा
चादरा बणाया
कुण री थूं नींद उड़ाई
कुणसी गोरड़ी रो
रूप कर्यो चोरी ?

अब थूं
म्हारै खन्नैं
कांईं लेबां नै आयो है ?
म्हारो बो मन तो
कोई लेयग्यो
अर इस्यो बरत्यो
कै करदी
तरेड़ां ई तेरड़ां
अबै थन्नैं
म्हैं राखूं कठै ?

</poem>
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