1,115 bytes added,
18:12, 27 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हैं जोवूं
वो गैलो
जिण सूं होय
म्हैं निकळ जावूं उण पार
आपरी मंजळ कानीं
पण
दीखै नीं म्हनैं वो गैलो
जिणसूं अजै तांई
नीं निसर्यो होवै
कोई बेईमान
कोई परलोटौ
कोई झूठौ
कोई हत्यारौ
कोई पापी
नीं...
नीं मिळै म्हनैं
वो गैलो
तो फेर पकडूं
वो इज गैलो
जिणसूं निसरै फगत ढोर डांगर
जिकौ अबोट है
अछूतौ है
अजै
झूठ कपट
छळ छंद अर
पाप री छियां सूं।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader