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विकास / वाज़िद हसन काज़ी

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|रचनाकार=वाज़िद हसन काज़ी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
समाज नैं
कुरीतियां सूं
बचावण खातर
पांच सितारा होटल में
भेळा होया जाणकार
अर नेता

थरप्या आपरा गैरा बिचार
पढीजिया परचा
पैरीजी माळावां
बंटिया इनाम इकराम
घसीज्या दांत

लो हो गयौ उद्धार देस रौ
दूर होयगी कुरीतियां
बणगौ सभ्य समाज

अेक'र फेरूं
करीजेला
प्रयास
वाह रै म्हारै देस रा विकास।
</poem>
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