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चाकरी / मनमीत सोनी

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|रचनाकार=मनमीत सोनी
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
रात कीं नीं
बस नांव है
पसवाड़ो फेर'र
च्यानणैं रै सुस्ताणै रो
अर दिन
दिन भी कीं नीं
बस खेल है
पसवाड़ो फेर'र
अंधारै रै आराम फरमाणै रो-

आं दोन्यां री चाकरी में
जे कोई
नीं झपकी है पलक
तो वा है
आ धरती...।
</poem>
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