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सींव / मनमीत सोनी

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|रचनाकार=मनमीत सोनी
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
अंधारो वठै ताणी
जठै ताणी
आपां देख नीं सकां...
अर च्यानणो
वो तो आपरी सींव बणा'र चालै...

दोनूं
आप-आप री जग्यां ठीक।
</poem>
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