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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>

धोरां री पाळ
झाड़ बोरड़ी सांकड़ै
मीठा बोरिया खांवतां
अचाणचक आयो
जाड़ तळै
एक खाटो बोरियो
आंख्यां रा काच थम्या
उथळीजण सारु जीभ
मठोठी खाई
पण आयो नी बारै
कोई आखर
कोई सबद
बा ओळ्यूं ई तो ही
थांरी अर थारै नांव री!
</poem>
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