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10:16, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी'
|अनुवादक=
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
ना सुवण नै खाट
घर मांय नीं अेक दाणो
बिगड़योडै़ ब्यांव रो
बो बींद हो काणो
मिल जावतो तो
रोटी खावतो
नीं तो धूड़ रा ई
फाका मारतो
घर माथै नीं ही छात
नीं कोई अलमारी
जीवणो ही उण खातर हो भारी
उण घर मांय घुसग्यो
अेक दिन अकाळ
उण रो तो जाणै
आयग्यो काळ
बो बोल्यो -
‘आव, कनै आव !
कीं लायो है तो,म्हनै ई खवाय।‘
आ सुणतां ई
अकाळ डरग्यो
उण घर सूं तो
सागी पगां भाजग्यो।
</poem>