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|रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी'
|अनुवादक=
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
गवाड़ रा मानीता मिनख
उणां रो घर
पैलड़ै साल अेक भींत घली
कीं माण घटयो
आगलै साल दूजी भींत
लोगां मांय सरू हुई
खुसर -फुसर
तीजै साल फेरूं अेक भींत
अबै लोग बाता करण लागग्या
की ंसाची अर कीं गोडै घड़ी
चौथो साल आयो
घर मांय हाका ई हाका
अेक भींत और घालीजगी
लोगां बाबोसा नै
मूंडै माथै सुणावणो सरू कर दियो
मोटो घर, चार भींतां !
अबै लोगां उणनै
घर नीं
मकान कैवणौ सरू कर दियो।
</poem>
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