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10:27, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु आचार्य 'आशावादी'
|अनुवादक=
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
घर मोटो है
बीस कमरा
ऊंची -ऊंची भींतां
जगमग रोसनी
मोटा -मोटा कंगूरा
देखतां ई मन हरखै
पण लोग
उण घर मांय सूं
आवण आळी
किणी मिनख री आवाज नै
तरसै
कांई बो घर है
कै खाली मकान है
या है खाली ढूंढो
उण मांय मिनख नीं है
तो मिनखाचारो कियां सोधां
काग उडै
काळ बड़ै
उणनै घर कियां मानां
मिनख हुवै तो
मकान भी मानां।
</poem>
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