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10:43, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
बगत माथै ई
काम आवै
बगत रा ओळाव
पण
ओळाव रो ई
बगत नीं मिलै तो
किंयां लेईजै
सांवठा ओळाव!
बैरी कुण
आंवती हूण रो
बगत रो ओळाव
का पछै
ओळाव रो बगत!
</poem>
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