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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
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|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

पाणीं रो टोटो
पण
प्रीत रा पीवै
भर-भर प्याला
म्हारो गांव!

अठै मिटै
जुगां री तिरस

जणांई भंवै मिरग
थळ री देह
सोधता अदीठ जळ
जिण नै पीयां
मिलै मुगती
भव बंधन सूं
म्हारै गांव में!
</poem>
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