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12:23, 28 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
हाथ मांय रंग
अर अेक छोटी ब्रष
साम्हीं कोरो कैनवास
कीं चितराम मांडणो चावूं खास
रंगभरी ब्रश चलावूं
आडी -तिरछी रेखावां मांड़ूं
फेरूं मन मांय झांकूं
दाय नीं आवै तो पूंछ दूं रंग
बार-बार ओ ई ढंग
आडी-तिरछी लाइनां मांडणी
मांड-मांड‘र मिटावणी
तस्वीर अेकर ई नीं बणी
माथै मांय ई रैयी पड़ी
सोच्यो -
जे उण नै मांड दी कैनवास माथै
तो बा हुय जासी न्यारी
फेरूं बा याद
नीं रैवैला खाली म्हारी ।
</poem>
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