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{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
उण दिन
म्हारो अंतस
म्हारै साम्हीं आय ‘र ऊभग्यो
उण नै देख ‘र म्हैं डरग्यो
उण रो सीधो सवाल
‘बता, क्यूं घाली
भायां मांय घात
क्यूं सुणायी कूड़ी बातां
जिण सूं रूकगी मा री सांसां
बाबोसा नै क्यू डराया
मौत रो भूत क्यूं दिखायो
बस,खाली आपरै खातर
पण थनै कांई मिलसी
फोड़ा तो पूरा भुगतणा पड़सी । ‘
साची है
जमानै री बातां रो हुवै जबाब
अंतस रै उजाळै नैं देख
कीं नीं बोलीजै
मूंडै मांय मूंग ई घालीजै।
</poem>
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