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अंधारौ / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
आपां
चालता चोखा लागां

रुक्या
तो गिटज्यैगौ
अंधारौ
गपळदांईं

पछै मारता रैया
हाथ-पग
अंधारै में

अंधारौ
पाप रौ घर
जठै
ना चाँद है
अर ना तारा

अंधारै में
पसरेड़ौ मून
अर दूर-दूर तांईं
च्यारूं चफेर
अंधारौ ई अंधारौ।
</poem>
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