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अपणायत / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
म्‍हूं आँख्यां सूं
जाण लेवूं
मन रै
मांयला भाव

आँख्यां
आरसी हुवै
मिनख रै मन री

म्‍हूं चावूं
कै पूंछदयूं
हरेक री
आँख रा आँसू

पण लोग
क्यूं हुया बगै
अळगा
अपणायत सूं ।
</poem>
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