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बाळपणौ / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
डेढ बाई दो रौ
कांच रौ बक्सौ
गिटग्यौ
टाबरां रौ
बाळपणौ

जदी तो
सिंझ्या हुंवतांईं
गांव री गळ्यां
हुय जावै सूनी
अर चौफेर पसरै मून।
</poem>
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