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क़तआत / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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क़तआत
क़तआत
01
06
एक हो जायेंगे इक दिन जहनो - दिल जुड़ जायेंगे
और मुसाफिर अपने-अपने मोड़ पर मुड़ जायेंगेबालो - पर भीगे हुए हैं, सूख जाने दो जरापेड़ पर बैठे परिंदे , खुद-ब-खुद उड़ जायेंगे
07
गाल गुलाबी, बाल सुनहरे, और अदा में भोलापन
09
हम भी बहुत गरीब हैं, तुम भी तुम भी बहुत गरीब
शायर ने हँस के ये कहा इक दिन अदीब से
मजबूर हो के करते हैं इजहारे-हाले-दिल
हम क्या करें हैं हमको, मोहब्बत 'रक़ीब' से
जिस्म दो हैं मगर एक है ज़िन्दगी
ग़म भी दोनों का इक, दोनों की इक खुशी
मैं हूँ एक चाँद आकाश पर प्यार केऔर तू है मेरी जाँ मेरी चांदनी
12
लहू से सींचती है, दूध, माँ जिसको पिलाती हैबड़ा होकर वो बच्चा, माँ का क्यों आदर नहीं करता
सबब इसका है कुछ माहौल, और कुछ परवरिश उसकी
जो माँ के सामने अपना, वो नीचा सर नहीं करता
13
माँ को मौसी, मौसी को माँ कहिये तो कोई बात नहीं
आग नफ़रत की न भड़केगी न भड़केगी कभी
17
पिन खोली और मुँह में दबाई
हाथ उठाए सँवारे बाल
खेल हवा ने खेला था जब
आपकी बात ही क्या, आप तो हैं हिन्दी दां
हाँ, मगर हमको है इस उर्दू जुबां से उल्फत
सर के ऊपर से निकल जाती है मुश्किल हिन्दी मेरे और उर्दू से मुझे मिलती है बेहद लज़्ज़त
23
हो दिल मरज़ दूर भला कैसे के अब तो
मँहगाई को मुफ़लिस पे दया तक नहीं आती
मुश्किल से महीने में बचाता है वह जितना
उतने में तो खाँसी की दवा तक नहीं आती
24
ज़िन्दगी के दिन कटे आओ जवाँ रातें करें
बंदिशें अब ख़त्म सारी बेसदा बातें करें
जिस्म का रिश्ता था फ़ानी, रूह तो है जाविदां
जब, जहाँ, जी भर के चाहें हम मुलाक़ातें करें
25
दिल की गहराई से यारब हम तुम्हें करते हैं याद
हर घड़ी, हर लम्हा रखना फूल से बच्चे को शाद
जन्मदिन पर 'रामआप' को आशीष देता है 'रक़ीब'
नानियों, माता-पिता, मौसी व मामाओं के बाद
26
रंग, अबीर, गुलाल भुलाकर लगाकर फूलों की बौछार करें
फ़ागुन आया छोड़ के नफ़रत प्यार करें, बस प्यार करें
छोटों को दें, बड़ों से लेकर, आशीर्वाद आज के दिन
फ़लक के चाँद सितारे भी तुझको छूने हैं
मगर ज़मीन के ज़र्रों को याद कर लेना
29
वो कहाँ है, कहाँ है, कहाँ है मियाँ
हाले-दिल मेरा उस पर अयाँ है मियाँ
ढूँढती हैं निगाहेँ जिसे रात-दिन
कोई बतलाये मुझको जहां है मियाँ
30
ये सवाली जवाब क्या जाने
ख्वाहिशे-दिल गुलाब क्या जाने
शिद्दते-दीद चश्मे नम की 'रक़ीब'
"उसके रुख़ का नक़ाब क्या जाने"
31
चालाक भाभी - होली में मस्ती
भिगोलो दूर से मुझको, उड़ालो रंग जी भरकर
कहा भाभी ने देवर से, न छूना मेरे "वो" दिन हैं
32
"दिखाई देती हैं खुशियाँ तमाम आँखों में
हैं बेक़रार बहुत लब न जाने क्या कह दें"
33
"पलभर की हँसी से बनी तस्वीर बहुत खूब
बेहतर हो ये जीवन, जो हमेशा ही रहें खुश"
34
उजाला कम है, समझ में ये बात आती है
भरम है सबको अंधेरा नहीं "चराग़" तले
35
बेकार भटकती है कहाँ, सुन तू हवा ले चल
ऊपर से समुन्दर के मुझको तू उड़ा ले चल
प्यासी है बहुत धरती, हम प्यास बुझाएंगे
ज़िद छोड़ हवा मुझको बादल ने कहा ले चल
36
अब किसी भी बात का कोई बुरा माने नहीं
ऐ जहां वालो सुनो हम हो गए हैं साठ के
37
न खाई न झूठी क़सम खाएंगे हम
जुदा हो के तुझसे न रह पाएंगे हम
यक़ीं गर न हो देख लो आज़माकर
बिछड़ने से पहले ही मर जाएंगे हम
38
सज गया है फ़लक चाँद की दीद है
हो मुबारक तुम्हें, ईद है, ईद है
सब मोहब्बत करें, हो न बुग़ज़ो-हसद
इस मुबारक घड़ी की ये ताकीद है
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