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पछीट पछीट कर धोते थे कपड़े
उसी की रेत से बनते थे घर
उसी के ऑगन मंे आँगन में उतरते थे
गणगौर के रथ
सजीली रणुबाई खिलखिलाती थी वहांवहाँ
रेत पर बिखरती थी धानी चावल की
खुद कभी जाती नहीं थी गाँव में
मगर गाँव के लोग
अपनी अर्थियां अर्थियाँ तक ले जाते थे वहांवहाँ
वहां वहाँ से
उसे मिलती थी जिंदगी
मिलती थी प्रेम कथाएं
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