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09:41, 8 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक।
शामिल है इस गुनाह में आलाकमान तक।
मिलती नही ग़रीब को इमदाद कहीं से,
इस मामले में चुप है मेरा संविधान तक।
फूटे हुए बरतन नहीं लोगों के घरों में,
उसके यहाँ चाँदी के मगर पीकदान तक।
उससे निजात पाने का रस्ता बताइये,
जो बो रहा है विष जमी से आसमान तक।
ये और बात है कि कोई बोलता नही,
पर, शान्त भी नहीं है कोई बेजु़बान तक।
जनता जो चाह ले तो असंभव नहीं है कुछ
इन पापियों का खत्म हो नामोनिशान तक।
</poem>
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