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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
लोखंड री पेटी में
अेक ग्रीस रो डब्बो
अेक पंप
अेक पेचकस
दो-चार चाबी-पाना
अर बोदो कपड़ो,
फगत इत्ती जिनसां है-
म्हारै प्रतिष्ठान में।

लांबी-चवड़ी सड़क
अर उण माथै बगता साधन
म्हारी उम्मीद।

धन्धो चालैला
उण बगत तांई
जद तांई चालैला-
म्हारा हाथ-पग
सूंवां-साबता।
</poem>
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