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11:23, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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<poem>
जका अबै गळी में है
सदीव रैवैला
गळी में
बां नैं कोनी मिलै घर
कदैई
क्यूंकै घरां रा बारणां बंद है
अर बधतो ई दीसै आंतरो
गळी अर घर बिचाळै।
</poem>
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