608 bytes added,
11:23, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
गळी में सोवै
गळी में जागै
गळी में पोवै
गळी में खावै
गळी में बोतलां-मेणियां
चुग'र करै बै
जीविका रो जुगाड़।
गळी बां रो घर है
अर घर अेक सपनो!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader