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बस्ती / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
आभै मुळकतो चमकतो चांद
घूमर घालतो बायरो
टिमटिमावता तारां
चकारा भरती कोचरी
सरसंू री सौरम
कस्सी मोढै लियां करसो,
नहर रै तो
आं री ई बस्ती है।
</poem>
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