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11:50, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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<poem>
अणथाग भीड़ में
साव अेकलो हूं म्हैं
मेळै में घर वाळा सूं
बिछड़्योड़ै टाबर दांई
चितबगनो।
सोधूं-
कोई सैंधो उणियारो
कदास म्हनैं ई
सोधतो हुवैला कोई
इणींज भांत।
कांई ठाह
इण सोधा-साधी में ई
कद बीत जावैला
आ जिनगाणी।
</poem>
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