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12:29, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
फगत जावणो सोरो है
आवणो कोनी हुवै सारू।
दोरा-सोरा
कियां ई रैया हुवो भलांई
पाछा घिरतां
कीं न कीं
लारै छूट ई जावै
का आय जावै सागै।
लारै छूट्योड़ै नैं
संभाळण सारू
जातरा करै मन
सागै आयोड़ो
चेतन राखै
ओळूं री धूणी।
बियां जावती बेळा ई तो
छोड़ीजै कठै कोई ठौड़
मतळब कीं छूटै लारै
का आवै साग-सागैै।
जीवां जित्तै
कोनी तूटै आ रीत।
</poem>
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