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बदलाव / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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16:30, 11 जुलाई 2017
हेना रीढ़ बिना विषधर रेंगतेॅ हए
लोगोॅ सें
भरलोॅ जाय रहलोॅ छै
समाज ।
समाज।
</poem>
Rahul Shivay
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