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11:06, 13 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुझे तो आजकल अपनी ख़बर नहीं मिलती।
मौत भी आदमी को पेशतर नहीं मिलती।
गाँव जब छोड दिया तब समझ में बात आयी,
गाँव की चाँदनी फुटपाथ पर नहीं मिलती।
ये हकी़क़त नहीं है सिर्फ एक धोखा है,
कभी इज्ज़त ख़ुदी को बेचकर नहीं मिलती।
खर्च पैसा करोया फिर कोई जुगाड़ करो,
अब सड़ी नौकरी भी इल्म पर नहीं मिलती।
कभी जुलूस निकालो, कभी हड़ताल करो,
नयी पगार हाथ जोड़कर नहीं मिलती।
बात में झूठ हो तो बात नहीं बन पाती,
नज़र में खोट जहाँ हो नज़र नहीं मिलती।
</poem>
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