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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
वही गगन भी छूता है जिसका ज़मीन से नाता है।
मिट्टी का पुतला ही उड़कर चाँद पे ध्वज फहराता है।

उसको भी देखा है जो अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ,
उसको भी देखा है जो बनकर पतंग इतराता है।

बढी रोशनी है ज़रूर, पर उसमें है वो बात कहाँ,
नन्हा -सा वो दिया देखिये तूफाँ से लड़ जाता है।

सहनशीलता सिखा सिखा कर किसने मार दिया उसको,
एक शेर का बच्चा अब बिल्ली से क्यों मिमियाता है।

गुस्सा आया, प्यार भी आया, रूठे भी और मान गये,
तेरी इसी अदा पर मेरा दिल लट्टू हो जाता है।
</poem>
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