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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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<poem>
इन गलियों में चले चलो, बस कुछ मत सोचो।
प्यार करों तो प्यार करो, बस कुछ मत सोचो।

यूँ पतझर का आना-जाना लगा रहे,
हर मौसम में खिले रहो, बस कुछ मत सोचो।

बार -बार तो मत कोसो अपनी क़िस्मत को,
थेाडा-सा संतोष करेा, बस कुछ मत सोचो।

कल भी तो बच्चों की ख़ातिर फ़ाके़ ही थे,
आज भी भूखे पड़े रहो, बस कुछ मत सोचो।
</poem>
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