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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=उजाले का सफर / डी. एम. मिश्र
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<poem>
दर्द से मुक्ति कभी तू ज़रूर पायेगा।
वक़्त के साथ सफ़र भी तेरा कट जायेगा।

हौंसलों पर चले है जिंदगी पाँवों पे नहीं,
पग बढ़े या न बढ़े, पर मुकाम आयेगा।

न तो पाँवों को तू ठोकर से बचा पाया है,
न तो दामन को तू दागों से बचा पायेगा।

चलो अच्छा हुआ जो ख़्वाब कई टूट गये,
अब न पलकों पे तू भारी वज़न उठायेगा।

कहीं शिकवे, कहीं मलाल, कहीं हैं फ़िकरे,
मुफ़त में सिर्फ़ यही तीन चीज़ पायेगा।
</poem>
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