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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=उजाले का सफर / डी. एम. मिश्र
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<poem>
अब कहाँ जायें हमारे रास्ते हैं बन्द।
ये हवायें लें गयीं सारा उड़ा मकरन्द।

फूल के हम पास जायें, दूर से खुशबू भी लें,
पर, इज़ाज़त है कहाँ हो जाँय हम स्वच्छन्द।

छोड़ना ही था तुझे तो क्यों किया फिर प्याचर,
जिंदगी में शेष है अब सिर्फ अन्तर्द्वन्द।

रोशनी को प्राण से देते अधिक हैं मान,
वे शलभ जो ढूँढते हैं आग में आनन्द।

अब दिये की ज्योति भी होने लगी है क्षीण,
अब दिये का ताप भी पड़ने लगा है मन्द।
</poem>
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