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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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<poem>
हमने भी आज कर लिये दर्शन शराब के।
हम भी करीब आ गये अब तो जनाब के।

दो घूँट पी के हम भी शहंशाह हो गये,
रखवा लिए हैं ताज हज़ारों नवाब के।

साकी पिलाये खुद तभी पीने का है मजा,
ओह क्या नशा है हुस्न में उस माहताब के।

पहलू में हम हों आप के या आपके गम में,
अच्छे तो दो ही दिन यही होते शराब के।

इतनी पिलाइये कि नींद दिन चढ़े खुले,
सब रास्ते भी शाम से हों बंद ख़्वाब के।

</poem>
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